ट्राई ने कुछ माह पहले जब टैली वैरीफिकेशन को अनिवार्य किया तो लगा कि अब फर्जी आईडी के मामले समाप्त हो जाएंगे। कुछ दिनों हुआ भी यही फर्जी आईडी पर सिम बेचने वालों के हौंसले पस्त हो गए। लेकिन इसका भी तोड़ इजाद कर लिया गया। सप्ताह भर पहले कांठ क्षेत्र में सामने आए मामले ने साबित कर दिया कि अब भी उपभोक्ताओं की पहचान सुरक्षित नहीं है। पुलिस प्रशासन ने बैठक तो ले ली, लेकिन रिटेलरों पर कोई लगाम नहीं कसी गयी। उस बैठक के बाद क्या एक दिन भी पुलिस ने इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिया? क्या जानने की कोशिश की गयी कि रिटेलर किस प्रकार लोगों की पहचान का दुरूपयोग करते हैं? पुलिस की नाकामी का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि कोतवाली के सामने और बराबर में ही लोगों की पहचान से खिलवाड़ किया जाता है।
ट्राई को बढ़ाने चाहिए नियम:
इस मामले हमने काफी जांच-पड़ताल की और पाया कि ट्राई अगर नियम-कायदों में कुछ निर्देश और बढ़ा दे तो इस फर्जीवाड़े पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। थोड़ा मुश्किल काम तो होगा… लेकिन असंभव तो नहीं। वैसे भी उपभोक्ताओं की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे से बचाव को सख्त नियमों की बेहद आवश्यकता है।
सुक्षाव 1: टैली वैरीफिकेशन के समय इस्तेमाल होने वाले मोबाइल फोन का रिकार्ड रखा जाए:
जैसे ही किसी सिम को एक्टिवेट करने के लिए टैली वैरीफिकेशन कॉल की जाए तो उस मोबाइल फोन का आईएमईआई नम्बर को अलग फाइल में दर्ज किया जाए। हर माह इस फाइल को चेक किया जाए, एक ही मोबाइल से माह में कई सिम एक्टिवेट होने का मतलब होता है कि रिटेलर खुद ही सिमों की टैली वैरीफिकेशन कर रहा है। जो पूरी तरह गैर-कानूनी है, क्योंकि यह प्रक्रिया केवल उपभोक्ता के करने के लिए है।
फायदा: इस नियम के लागू होने से रिटेलर स्वयं सैकड़ों-हजारों की संख्या में सिम एक्टिवेट नहीं कर पाएंगे। फिलहाल रिटेलर अपने ही मोबाइल से प्रतिदिन एक सौ से दौ सौ सिम एक्टिवेट कर रहे हैं।
सुझाव 2: ग्राहक को मिलनी चाहिए एक्टिवेट नम्बरों की जानकारी:
ट्राई को ग्राहक की आईडी पर एक्टिवेट किए गए सभी सिमों की जानकारी रिटेलर के नाम सहित डाक द्वारा ग्राहक को भेजनी चाहिए। जब से टैली वैरीफिकेशन अनिवार्य हुई एक आईडी पर नौ से अधिक सिम एक्टिवेट नहीं होते हैं। जब नौ सिम की सीमा पूरी हो जाती है तो दसवां सिम एक्टिवेट नहीं हो सकता। इस स्थिति में किसी की भी पहचान को सात से आठ बार तक आराम से खतरे में डाला जा सकता है।
फायदा: अगर ट्राई ने ग्राहक को यह जानकारी उपलब्ध करा दी तो रिटेलरों व डिस्ट्रीब्यूटरों ने पिछले महीनों में जो भी फर्जीवाड़ा किया वो जनता के सामने होगा। इससे पुलिस को भी कार्रवाई करने में मदद मिलेगी। इस नियम में परेशानी आना संभव है, क्योंकि देश भर में इस नियम के बाद करोड़ों सिम एक्टिवेट हो चुके हैं। लेकिन ऐसे प्रबंध भी किए जा सकते हैं कि ग्राहक की मांग पर यह जानकारी उपलब्ध करायी जाए, जिसका खर्चा ग्राहक ही वहन करे।
सुझाव 3: बंद किए जाएं पुराने सिम:
टैली वैरीफिकेशन अनिवार्य होने से पूर्व एक्टिवेट किए गए सिमों को भी इस प्रक्रिया के अंर्तगत लाने के लिए दोबारा आईडी प्रूफ जमा कराए जाएं।
फायदा: इससे टीवी प्रक्रिया अनिवार्य होने से पहले जो सिम फर्जी आईडी पर एक्टिवेट हुए वो बंद हो जाएंगे। इससे ग्राहकों की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे से निजात मिल जाएगी।
‘खतरे में सुरक्षा’
फैज़ान अंसारी
ट्राई ने कुछ माह पहले जब टैली वैरीफिकेशन को अनिवार्य किया तो लगा कि अब फर्जी आईडी के मामले समाप्त हो जाएंगे। कुछ दिनों हुआ भी यही फर्जी आईडी पर सिम बेचने वालों के हौंसले पस्त हो गए। लेकिन इसका भी तोड़ इजाद कर लिया गया। सप्ताह भर पहले कांठ क्षेत्र में सामने आए मामले ने साबित कर दिया कि अब भी उपभोक्ताओं की पहचान सुरक्षित नहीं है। पुलिस प्रशासन ने बैठक तो ले ली, लेकिन रिटेलरों पर कोई लगाम नहीं कसी गयी। उस बैठक के बाद क्या एक दिन भी पुलिस ने इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिया? क्या जानने की कोशिश की गयी कि रिटेलर किस प्रकार लोगों की पहचान का दुरूपयोग करते हैं? पुलिस की नाकामी का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि कोतवाली के सामने और बराबर में ही लोगों की पहचान से खिलवाड़ किया जाता है।
ट्राई को बढ़ाने चाहिए नियम:
ट्राई अगर नियम-कायदों में कुछ निर्देश और बढ़ा दे तो इस फर्जीवाड़े पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। थोड़ा मुश्किल काम तो होगा… लेकिन असंभव तो नहीं। वैसे भी उपभोक्ताओं की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे से बचाव को सख्त नियमों की बेहद आवश्यकता है।
सुक्षाव 1: टैली वैरीफिकेशन के समय इस्तेमाल होने वाले मोबाइल फोन का रिकार्ड रखा जाए:
जैसे ही किसी सिम को एक्टिवेट करने के लिए टैली वैरीफिकेशन कॉल की जाए तो उस मोबाइल फोन का आईएमईआई नम्बर को अलग फाइल में दर्ज किया जाए। हर माह इस फाइल को चेक किया जाए, एक ही मोबाइल से माह में कई सिम एक्टिवेट होने का मतलब होता है कि रिटेलर खुद ही सिमों की टैली वैरीफिकेशन कर रहा है। जो पूरी तरह गैर-कानूनी है, क्योंकि यह प्रक्रिया केवल उपभोक्ता के करने के लिए है।
फायदा: इस नियम के लागू होने से रिटेलर स्वयं सैकड़ों-हजारों की संख्या में सिम एक्टिवेट नहीं कर पाएंगे। फिलहाल रिटेलर अपने ही मोबाइल से प्रतिदिन एक सौ से दौ सौ सिम एक्टिवेट कर रहे हैं।
सुझाव 2: ग्राहक को मिलनी चाहिए एक्टिवेट नम्बरों की जानकारी:
ट्राई को ग्राहक की आईडी पर एक्टिवेट किए गए सभी सिमों की जानकारी रिटेलर के नाम सहित डाक द्वारा ग्राहक को भेजनी चाहिए। जब से टैली वैरीफिकेशन अनिवार्य हुई एक आईडी पर नौ से अधिक सिम एक्टिवेट नहीं होते हैं। जब नौ सिम की सीमा पूरी हो जाती है तो दसवां सिम एक्टिवेट नहीं हो सकता। इस स्थिति में किसी की भी पहचान को सात से आठ बार तक आराम से खतरे में डाला जा सकता है।
फायदा: अगर ट्राई ने ग्राहक को यह जानकारी उपलब्ध करा दी तो रिटेलरों व डिस्ट्रीब्यूटरों ने पिछले महीनों में जो भी फर्जीवाड़ा किया वो जनता के सामने होगा। इससे पुलिस को भी कार्रवाई करने में मदद मिलेगी। इस नियम में परेशानी आना संभव है, क्योंकि देश भर में इस नियम के बाद करोड़ों सिम एक्टिवेट हो चुके हैं। लेकिन ऐसे प्रबंध भी किए जा सकते हैं कि ग्राहक की मांग पर यह जानकारी उपलब्ध करायी जाए, जिसका खर्चा ग्राहक ही वहन करे।
सुझाव 3: बंद किए जाएं पुराने सिम:
टैली वैरीफिकेशन अनिवार्य होने से पूर्व एक्टिवेट किए गए सिमों को भी इस प्रक्रिया के अंर्तगत लाने के लिए दोबारा आईडी प्रूफ जमा कराए जाएं।
फायदा: इससे टीवी प्रक्रिया अनिवार्य होने से पहले जो सिम फर्जी आईडी पर एक्टिवेट हुए वो बंद हो जाएंगे। इससे ग्राहकों की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे से निजात मिल जाएगी।
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